*Guru Gyan:* _(Shiv Sutra_4.2)_ दृश्य से हटकर दृष्टा में स्थित हो जाना ही योग है। दृष्टा के, देखनेवाले के स्वरूप में बैठ जाना ही योग है। पहले शरीर को दृश्य बनाओ। योग निद्रा मे यही तो करते है...मन को शरीर के एक एक अंग में लेके जाते है और उस अंग को देखते है। शरीर को दृष्टापन से देखने लगे तो मन लगता है कि यह जीता जागता ज्योति है... वही मैं हूँ... मैं और शरीर अलग है...यह अनुभूति हमें होने लगता है। शरीर को दृश्य बनाओ। यह प्रयोग भी है और साधना भी है। दृश्य के साथ हो जाना ही दुःख का कारण है। लोग सिनेमा देखने जाते है तो वो पात्र के साथ एक हो जाते है....भावूकता मे बह जाते है, होश खो जाते है। जीवन भाव और बुद्धि का मेल है। भाव और बुद्धि दोनों को बनाये रखना है। अक्सर बुद्धिजीवी लोग भाव को मार देते है, उनमें प्रेम नहीं होता है, बड़े सूखे सूखे रहते है। और कुछ लोग बड़े भावुक होते है, हर कदम पर प्रेम में रोते है, सोचते ही नही। यह दोनों प्रकार के लोग अधूरे रह जाते है। पूर्णता तभी आएगी जब भाव और बुद्धि का मेल रहेगा, भाव और बुद्धि दोनों खिलेगी। दृश्य के साथ एक हो जाना।ही दुःख का कारण है। दुःख से पार होने का मंत्र है दृश्य से हटकर दृष्टा में आ जाना। और शरीर भी जबतक तुम दृश्य बनाओगे, शरीर को भी दृष्टा मानोगे, शरीर के साथ तादात्म्य हो जाओगे तो उसकी पीड़ा से तुम दुःखी हो जाओगे, उसके सुख से तुम सुखी हो जाओगे.... तो शरीर को दृश्य बनाना ही ज्ञान की।पहली सीढ़ी है। तो दृश्यं शरीरम् यह सूत्र बताता है की शरीर को भी दृश्य बनाओ।
Shiv Sutra_4.2_ Being away from the scene and get into the seear is Yoga. Sitting in the form of the eye of the beholder is yoga. Make the body visible first. This is what we do in Yoga Nidra ... the mind is taken to every part of the body and looks at that part. When you start looking at the body with a vision, then the mind feels that it is a living light… that is me… I and the body are different… This feeling starts happening to us.Make the body a scene. This is also experiment and practice. Getting along with the scene is the cause of sorrow. When people go to the cinema, they become one with the character… they get swept away, they lose consciousness. Life is a combination of emotion and intelligence. Both sentiment and intelligence have to be maintained. Often intellectual people kill emotion, they do not have love, big droughts remain dry. And some people are very emotional, weeping in love at every step, not thinking at all. Both these types of people remain incomplete. Perfection will come only when there is a combination of emotion and intelligence, both emotion and intelligence will blossom. Becoming one with the scene....is the cause of sorrow. The mantra to overcome grief is to move from scene to Seear. And as long as you make the body scene, you will look at the body as well, if you become identified with the body, then you will be sad because of its pain, you will be happy with it's happiness…. There is a ladder. So Drusham Shriram... tells this formula to make body scene.