*Guru Gyan:* _(Shiv Sutra_5.3)_ तर्क से विज्ञान, कुतर्क से अज्ञान और वितर्क से आत्मज्ञान। वितर्क का अर्थ है कुछ ऐसे विचार जिसका कुछ उत्तर नहीं होता। जैसे की मैं कौन हूँ....यह प्रश्न ही काफी है। ये प्रश्न पूछते पूछते आप गहराई मे उतर आते है...उसका उत्तर शब्द से नहीं मिले वह वितर्क है। कोई व्यक्ति सो रहा है औऱ खर्राटे ले रहा है तो उससे कोई उत्तर की जरूरत नही होती। किसी ने पूछा कि आपने भगवान को देखा क्या ? तो उसपर चुप रहना ही उत्तरर है। मुँह खोला, बोलने लगे गए तो विकार शुरु हो गए। मौन जो समझा सकता है वहाँ वाणी नहीं पहुँच सकती है। ऐसा जो तत्व जो तर्क के पकड़ में नहीं आए उसको कहते है....आत्मतत्व, वितर्क। मैं कौन हूँ... ऐसा पूछते जाओ तब जो उत्तर मिलता है वह मैं हूँ। यह प्रयोग है, समझनेवाली बात नहीं है। प्रयोग अनुभूति का विषय है, समझ का नहीं। अनुभूति समझ के परे है तभी तो उसको अनुभूति कहते है। प्रयोग अनुभूति का एक छोटासा हिस्सा है। अनुभूति के लिए अंतर्मुखी होना जरूरी है। वितर्क हमें अंतर्मुख कर देता है...मैं कौन हूँ, ये जगत क्या है? ...ये पूछते जाओ... पूछते पूछते सारे उत्तर समाप्त होते है...भीतर से मौन छा जाता है ...उस मौन की गहराई मैं आत्मज्ञान संभव है....वाणी से आत्मज्ञान कदापि संभव है। एक सूत्र मे कहा है भाव से जाओ। इसमें कहते है तर्क से जाओ। भाव और तर्क मे बड़ा विरोध है। संगीत सुनते हो तब एक ही शब्द को कितने बार सुनते है। बुद्धि से कोई संगीत सुनने जाओ तो वो संगीत को पागलपन कहेंगे। इतने बार सुनने की क्या जरूरत है मगर भाव बार बार दोहराता है। प्रेम है प्रेम है यह बार बार कहने की जरूरत नही है...यह बुद्धि का कहना है। बुद्धि दोहराना पसंद नहीं करता...इसीलिए होशभरा व्यक्ति किसी का कंप्लेंट सुन नहीं पाता। शिकायत जैसे बार बार कहते है वैसे ही प्यार बार बार कहते है। तर्क मे जीता हुवा व्यक्ति इसे सह नहीं पाता...उसको गुस्सा आएगा या बोरियत होने लगेगी। तर्क में रुचि रखनेवाले व्यक्ति की भजन कभी पसंद नहीं आएगा। भाव से जो कहता है उसे शक्ति आने लगती है, रोम रोम से खिल उठता है, मस्ती आने लगती है। तर्क और भाव कभी मिलते नहीं। भाव से लय समाधि की बात हो गयी। और तर्क से भी आप समाधि में पहुँच सकते है। तर्क को कुतर्क ना करो...उसे वितर्क मे बदलो और मन को शांत करो। मैं कौन हूँ यह वितर्क का मूल सूत्र है। ....मेरे सद्गुरु की छबि कैसे है ...मोहे लागे मोहन जैसी है। _
Shiv Sutra_5.3_ Science from logic, ignorance from sophistry and enlightenment from vitarka. Vitarka means some idea that has no answer. Like who am I .... This question is enough. Asking these questions, you come deep in the question… its answer is not a word. If a person is sleeping and snoring, then no answer is needed from him. Someone asked if you saw God? So the answer is to remain silent on it. If you open your mouth and started speaking, then the disorders started. Silence that can explain, words cannot reach there. Elements that do not get caught in the logic are called…. Ask yourself who I am? ... I am is the answer you get. This is an experiment, not an understandable thing. Use is a matter of feeling, not of understanding. A feeling is beyond comprehension, then it is called a feeling. Experimentation is a small part of cognition. It is important to be introverted for realization.The argument turns us ... who am I?, what is this world? ... go on asking this ... all the answers end up asking ... silence ensues from within ... Self-knowledge is possible in the depth of that silence .... Self-knowledge is possible with speech.In one sutra it says go with emotion. It says go through logic. There is a big conflict in sentiment and logic. When you listen to music, how many times do you hear the same word. If you go to listen to any music with your intellect, it will be called madness. What is the need to listen so many times, but the feeling repeats itself again and again. There is no need to say it is love, it is love again and again… it is a matter of wisdom. Wisdom does not like to repeat… That is why a conscious person is unable to listen to someone's complaint. Complaints are the same as love is said over and over again. A person who lives in an argument cannot bear it… He will get angry or start getting bored. The person interested in logic will never like the hymn. Power starts coming to what he says with emotion, you starts blossoming, fun starts coming. Arguments and expressions never meet. The emotion became a matter of rhythm. And by logic you can reach samadhi. Don't cut logic ... turn it into argument and calm the mind. Who I am is the root of the argument. .... how my Sadhguru's looks like ... Mohe Lage is like Mohan.