Bad Antogast
31 Jul 1996
Germany
Today is a gift from God -- that is why it is called "present!"
DON'T BE GRATEFUL!
Warning! Watch out! This Knowledge Sheet contains explosives! It can explode your head or your heart. If it explodes your heart -- nothing is left! If it explodes your head -- everything is attained!
Guruji: How many of you are grateful here? (Everybody raises their hand.) If you are grateful, you don't belong to Me! (Everyone is shocked.) You are not part of the Master. When someone gives you something, you are grateful. That means you feel separate. You are not grateful to yourself.
Gratefulness is inevitable. When you go beyond gratefulness, then union happens. No "I," no "you" remains. You are part of the Master. You are just One Being with a thousand heads and a thousand arms, but with one heart. You have got to be grateful on the path, but you have to transcend gratefulness. Better stop being grateful. (Laughter.)
When you are grateful then you are the center, you are more important. When you are grateful to God for having received something beautiful, for example, eyesight, who is important? You or God? You! So your gratitude indicates ego.
Richard: But you are not grateful?
Guruji: I am simply great and I am full! (Laughter) Don't be grateful; just be great -- and be full! (Laughter)
This Knowledge is very dangerous! When you are part of the Master, you have every right to be happy. You have every right to Knowledge, happiness, and the whole universe!
Angelika: Small children donÒ´ feel grateful as long as they feel one. They take everything for granted.
Meike: You are not grateful to your own hand which feeds you.
Ananda: On one of the courses you said in the thanking process, "Now, thank yourself for being here!" So you can thank yourself.
Guruji: if you wish, you can! This is true celebration: thanking yourself!
* * * *
Balder: Could you say something about the relationship to friends and the relationship to the Master?
Guruji: Your friends tie you to the world, to the matter. The Master ties you to the Divine, to the spirit.
🌸Jai Guru Dev🌸
साप्ताहिक ज्ञानपत्र ०६०
३१ जुलाई, १९९६
जर्मन अकादमी, बैड अन्तगसत , जर्मनी
कृतज्ञ मत हो !
आज (वर्तमान) ईश्वर से मिला उपहार है - इसलिए इसे "प्रेजेंट" (उपहार) कहते है।
सावधान! यह ज्ञान-पत्र विस्फोटक है। यह तुम्हारे दिल या दिमाग का विस्फोट कर सकता है, यदि हृदय के टुकड़े हो जाये -कुछ नहीं बचता। यदि तुम्हारे दिमाग के टुकड़े कर दे-समझो सब -कुछ मिल गया।
श्री श्री: यहाँ तुम में से कितने व्यक्ति कृतज्ञ हो (सभी ने हाथ उठाया )
अगर तुम कृतज्ञ हो, तो तुम मेरे नहीं हो।( सब स्तब्ध रह गये)
यदि कोई तुम्हें कुछ देता है और तुम आभारी होते हो, इसका मतलब तुम स्वयं को उनसे अलग समझते हो। तुम अपने प्रति कभी आभार नहीं प्रकट करते। आभार दर्शाने का अर्थ हुआ कि तुम अपने आप को गुरु का अंश नहीं समझते।
माइक: हाँ , हम जिस हाथ से खाते है, उस हाथ के प्रति तो आभारी नहीं होते।
अंजलीका: बच्चे जब तक अपनापन अनुभव करते है, तब तक कृतज्ञ नहीं होते। वे सब चीज पर अपना हक समझते है।
श्री श्री: कृतज्ञता से भी आगे जाने पर एक मेल होता है। न "मैं" रहता है , न "तुम"। तुम गुरु के हिस्से हो। सब एक ही है, एक ही आत्मा जिसके हजारो सिर, हजारो हाथ है, पर हृदय एक ही है।
इस पथ पर कृतज्ञ तो होना ही है, कृतज्ञता अनिवार्य है, लेकिन तुम्हें कृतज्ञता से भी आगे बढ़ना है। अच्छा यही है कि तुम कृतज्ञ न बनो!(हंसी)
जब तुम कृतज्ञ होते हो , तुम केंद्र बन जाते हो, तुम महत्वपूर्ण महसूस करने लगते हो । जब तुम किसी भी खूबसूरत वास्तु के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होते हो-जैसे आँखों की दृष्टि -कौन ज्यादा महत्वपूर्ण हुआ ? तुम या ईश्वर? तुम! तो तुम्हारी कृतज्ञता अहंकार दर्शाती है।
रिचर्ड: आप कृतज्ञ नहीं है?
श्री श्री: मैं महान (ग्रेट) भी हूँ और पूर्ण (फुल) भी -(हतंजमनीस) । कृतज्ञ मत बनो। महान बनो और पूर्ण बनो। श्रद्धा के बिना यह ज्ञान खतरनाक हो सकता है।
जब तुम गुरु के अंश हो, तुम्हें खुश रहने का पूरा अधिकार है, ज्ञान आनंद और समस्त, सृष्टि पर तुम्हारा पूरा अधिकार है।
बोल्डर : क्या आप मित्रो के साथ हमारे सम्बन्ध और गुरु के साथ हमारे सम्बन्ध की तुलना कर सकते है?
श्री श्री: तुम्हारे मित्र तुम्हें सांसारिकता से, वस्तु-विषयो से बांधते है: गुरु तुम्हें ईश्वर से,आत्मा से जोड़ते है।
🌸जय गुरुदेव 🌸