Rishikesh
19 Mar 1998
India
Inside Out
Often people say, "Be the same inside as out". I ask you, how is this possible?
Inside you are a vast ocean, infinite sky; what you can show outside is only a tiny bit of it. Outside you are finite, just a small limited form, a normal stupid person!
All that you are, the love, the beauty, the compassion, the Divinity, doesn't show up fully. What shows up is the crust of behaviors. Ask yourself, "Are you really your behaviors? Are you just your behavioral patterns"? No....... Don't mistake this crust for your inside.
Neither take the limited body/mind complex as your inside nor show your Infinite Lordship outside, for Divinity is not easily understood. Let there be some mystery.
DON'T BE THE SAME INSIDE AND OUT!!
Jai Guru Dev
साप्ताहिक ज्ञानपत्र १४५
१९ मार्च, १९९८
ऋषिकेश , भारत
अंदर-बहार
अक्सर व्यक्ति कहते है , "बाहर भी वैसे ही रहो जैसे तुम अंदर हो।" मैं पूछता हूँ , यह कैसे संभव है?
भीतर तुम एक अपार सागर हो, अनंत आकाश । बाहर तुम परिमित हो सिर्फ एक छोटा सा सीमित आकार , एक साधारण बेवकूफ व्यक्ति । सब कुछ जो तुम अंदर हो - प्रेम , सौंदर्य , अनुकम्पा , दिव्यता - बाहर से पूरी तरह दिखाई नहीं देता । जो नजर आता है वह है सिर्फ व्यवहारों की ऊपरी परत।
खुद से पूछो , क्या मैं सचमुच आचरण का प्रतिरूप हूँ ? क्या मैं सचमुच इस सीमित शरीर/मन का सम्मिश्रण हूँ , ? नहीं ... तुम अंदर वही नहीं जो तुम बाहर हो।
बाहरी आवरण को वह समझने की गलती न करो जो तुम भीतर हो।
और अपनी अनंत प्रभुता का प्रदर्शन न करो क्योकि दिव्यता आसानी से समझी नहीं जाती।
थोड़ा सा रहस्य रहने दो ।
ऋषिकेश में होली के अवसर पर सभी उत्सव मना रहे थे; उपस्थित संत - जन गेरुआ धारण किये थे, श्री श्री सफ़ेद वस्त्रो में । गुरूजी ने कहा :
"हृदय उज्जवल है जो जीवन में शुद्धता का प्रतीक है ; सर गेरुआ है जो त्याग का प्रतीक है। और जीवन बिलकुल रंगीन है।
🌸जय गुरुदेव🌸