Mimusops elengi Common name: Spanish cherry, Maulasiree (मौलसिरी), Urdu: Kirakuli किराकुली, मराठी : बकुळी, Sanskrit: चिरपुष्प
Medicinal_Plants (used in alternative system of medicine)
Molshree Tree, Mimusops elengi is a medium-sized evergreen tree.
It is common in "Southeast Asia and northern Australia. It flowers in April to June - July and produces fruits till winter.
Besides Spanish cherry, it is known as medlar, and bullet wood. Its timber is valuable, and the fruit is edible. As the trees give thick shade and flowers emit fragrance, it is a popular gardens tree.
Its flower is the provincial flower of Yala Province of Thailand.
Ayurvedic uses
The bark, flowers, fruits, and seeds are used in Ayurvedic medicine in which "it is purported to be astringent, cooling, anthelmintic, tonic, and febrifuge". It is mainly used for dental ailments such as bleeding gums, pyorrhea, dental caries, and loose teeth".
Other uses
The edible fruit is soft, hairy, becoming smooth, ovoid, bright yellow to orange when ripe.
The wood is said to be hard, strong and tough, and rich deep red in color. The wood is used for railway slippers, being hard. It can be used to have a beautiful polish and good finish.
मौलसिरी (Maulasiree) दक्षिण-पूर्व एशिया तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में होता है। भारत में देश के प्रायः हर भाग में पाया जाता है। सामान्य तौर पर यह उद्यानों में पाया जाता है। इसके पेड़ तकरीबन तीस फुट ऊंचे होते हैं। पत्ते चिकने होते हैं तथा यह गर्मी में भी हरा भरा रहता है।
इसके फूल खुशबूदार होते हैं।
फल चिकने होते हैं, ये पकने पर पीले और संतरी रंग के होते हैं। फूल अप्रैल से जून जुलाई तक आते हैं तथा फल सर्दियों तक चलते हैं। इसके फूल सुगंधित होते हैं। केशसज्जा मेआं भी प्रयुक्त होते हैं। इनसे इत्र भी बनाया जाता है।
इसकी लकड़ी काफी मजबूत होती है तथा रेलवे के स्लीपर बनाने के काम आती है। पॉलिश के बाद चमक वाली होती है
मौलसिरी आयुर्वेदिक में दांत के रोग में, मसूड़े के रोग में, मुह में सूजन आजाने पर, शरीर में गर्मी महसूस होने पर, पेशाब में जलन में, पथरी में, दिल के रोगों में, खांसी में, अतिसार इत्यादि में उपयोगी है।
हिंदी साहित्य मरण इसका बार बार उल्लेख होता है। प्रेम चंद से लेकर हजारी प्रसाद द्विवेदी तक ने इसको लिखा। द्विवेदी जी की एक कथा "अशोक के फूल" से कुछ पंक्तियाँ:
"न जाने किस बुरे मुहूर्त में मनोजन्मा देवता ने शिव पर बाण फेंका था। शरीर जलकर राख हो गया और 'वामन-पुराण' (षष्ठ अध्याय) की गवाही पर हमें मालूम है कि उनका रत्नमय धनुष टूटकर खंड-खंड हो धरती पर गिर गया। जहाँ मूठ थी, वह स्थान रुक्म-मणि से बना था, वह टूटकर धरती पर गिरा और चंपे का फूल बन गया। हीरे का बना हुआ जो नाह-स्थान था, वह टूटकर गिरा और मौलसरी के मनोहर पुष्पों में बदल गया। अच्छा ही हुआ। इंद्रनील मणियों का बना हुआ कोटि देश भी टूट गया और सुंदर पाटल पुष्पों में परिवर्तित हो गया। यह भी बुरा नहीं हुआ। लेकिन सबसे सुंदर बात यह हुई कि चंद्रकांत मणियों का बना हुआ मध्य देश टूटकर चमेली बन गया और विद्रुम की बनी निम्नतर कोटि बेला बन गई, स्वर्ग को जीतनेवाला कठोर धनुष जो धरती पर गिरा तो कोमल फूलों में बदल गया। स्वर्गीय वस्तुएँ धरती से मिले बिना मनोहर नहीं होतीं।"
Information compiled from various sources.
Pawan kumar Gupta